आज विश्व ताज़े जल के संसाधनों की उपलब्धता और पहुँच के संकट से इसलिए जूझ रहा है क्योंकि इन संसाधनों की मांग लगातार बढ़ रही है, जबकि उपलब्धता सीमित है। इस मांग में वृद्धि के कई कारण हैं, जिनमें शामिल हैं:
- जनसंख्या वृद्धि: विश्व की जनसंख्या लगातार बढ़ रही है। 2023 में विश्व की जनसंख्या लगभग 8 अरब है, और यह अनुमान है कि यह 2050 तक 9.7 अरब तक पहुंच जाएगी। बढ़ती जनसंख्या के साथ, पानी की मांग भी बढ़ेगी।
- विकास: विकासशील देशों में, बढ़ती आर्थिक गतिविधियों और शहरीकरण के कारण पानी की मांग बढ़ रही है। औद्योगिक उत्पादन, कृषि, और घरेलू उपयोग में पानी की खपत बढ़ रही है।
- जलवायु परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन के कारण, मौसम में अनियमितताएं बढ़ रही हैं। सूखे और बाढ़ की घटनाओं में वृद्धि हो रही है, जिससे पानी की उपलब्धता प्रभावित हो रही है।
इन कारकों के कारण, कई देशों में ताज़े जल की कमी हो रही है। 2023 में, लगभग 2.8 बिलियन लोग किसी न किसी रूप में जल संकट का सामना कर रहे हैं। इनमें से लगभग 1.2 बिलियन लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां पीने के लिए स्वच्छ पानी तक पहुंच नहीं है।
ताज़े जल की कमी के कई गंभीर परिणाम हो सकते हैं। इनमें शामिल हैं:
- स्वास्थ्य समस्याएं: पीने के लिए स्वच्छ पानी की कमी से कई तरह की स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं, जिनमें दस्त, हैजा, और टाइफाइड शामिल हैं।
- आर्थिक नुकसान: कृषि, उद्योग, और पर्यटन जैसे क्षेत्रों को पानी की कमी से नुकसान हो सकता है।
- सामाजिक अशांति: पानी की कमी से सामाजिक अशांति और संघर्ष हो सकता है।
ताज़े जल के संकट से निपटने के लिए कई उपाय किए जा सकते हैं। इनमें शामिल हैं:
- जल की खपत को कम करना: पानी की खपत को कम करने के लिए, हमें पानी की बर्बादी को रोकने और पानी के उपयोग में दक्षता में सुधार करने की आवश्यकता है।
- जल संसाधनों का संरक्षण करना: जल संसाधनों का संरक्षण करने के लिए, हमें वर्षा जल संचयन, जल पुन:उपयोग, और जल संरक्षण प्रौद्योगिकियों को अपनाने की आवश्यकता है।
- जलवायु परिवर्तन से निपटना: जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए, हमें ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन को कम करने और जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को कम करने के लिए उपाय करने की आवश्यकता है।
ताज़े जल का संकट एक गंभीर समस्या है जिसका समाधान करने के लिए सभी देशों और व्यक्तियों को मिलकर काम करने की आवश्यकता है।
सुधार हेतु कुछ उपाय:
वर्षा जल संचयन जैसी प्रथाओं को बढ़ावा देना (तमिलनाडु की ‘नम्मा ऊरू-नम्मा वीतू’ पहल)।
संरक्षित कृषि जैसी कुशल कृषि पद्धतियों को अपनाया जाना चाहिये ताकि अधिक जल की बचत हो।
स्मार्ट सिंचाई प्रणालियों के साथ उन नवीन समाधानों का उपयोग करना चाहिये जिनमें जल की बर्बादी कम हो। (जैसे- ‘सर्वजल’ परियोजना के तहत सौर ऊर्जा संचालित जल ATMs की स्थापना)।
जल के उपयोग को कम करने के साथ जल फुटप्रिंट को कम करना।