अधिकतम मत पध्दति
- पूरे देश को छोटी छोटी भौगोलिक इकाइयों में बाँट देते हैं जिसे निर्वाचन क्षेत्र या जिला कहते हैं |
- हर निर्वाचन क्षेत्र से केवल एक प्रतिनिधि चुना जाता है |
- मतदाता प्रत्याशी को वोट देता है |
- पार्टी को प्राप्त वोटों के अनुपात से अधिक या कम सीटें विधायिका मे मिल सकती हैं |
- विजयी उम्मीदवार को जरूरी नहीं कि वोटों का बहुमत मिले (50%+1) मिले, उदाहरण के लिए – यूनाइटेड किंग्डम और भारत
समानुपातिक चुनाव व्यवस्था
-
- किसी बड़े भौगोलिक क्षेत्र को एक निर्वाचन क्षेत्र मान लिया जाता है, पूरा का पूरा देश एक निर्वाचन क्षेत्र गिना जा सकता है |
- एक निर्वाचन क्षेत्र से कई प्रतिनिधि चुने जा सकते हैं |
- मतदाता पार्टी को वोट देता है |
- हर पार्टी को प्राप्त मत के अनुपात मे विधायिका मे सीटें प्राप्त होती हैं |
- विजयी उम्मीदवार को वोटों का बहुमत प्राप्त होता है, उदाहरण के लिए – इज़राइल और नीदरलैंड
पंचायती राज नोट्स गठन संरचना आरक्षण कार्य
पंचायती राज
- लोकतांत्रिक देशों की सबसे बड़ी चुनौती रही है कि कैसे प्रत्येक निर्णय में जनता की सहभागिता को बढ़ाया जाए जिससे वे अपने विकास का रास्ता खुद तय कर सके इसी उद्देश्य को बढ़ावा देने के लिए सत्ता के विकेंद्रीकरण की बात कही जाती है |
- गांव में व्याप्त समस्याओं को केंद्रीय स्तर पर बैठकर हल नहीं किया जा सकता है इन समस्याओं को विकेंद्रीयकरण के माध्यम से ही हल किया जा सकता है जिसका सबसे अच्छा माध्यम ग्राम सभाएं हो सकती हैं |
स्थानीय स्वशासन की विशेषताएं
- जनता अपनी समस्याओं को स्वयं हल कर सकती है |
- कार्यों के बंटवारे से केंद्र व राज्य स्तर की सरकारों का बोझ कम होगा |
- राजनीतिक चेतना का विकास होता है |
- सत्ता के विकेंद्रीकरण से जन कल्याणकारी कार्यों को आसानी से पूरा किया जा सकता है |
स्थानीय स्वशासन के जनक
- भारत में स्थानीय स्वशासन का जनक लॉर्ड रिपन 1880 से 1884 ईसवी को माना जाता है इन्होंने 1882 ईस्वी को एक प्रस्ताव पारित कर के स्थानीय शासन के लिए निम्न प्रावधान किए |
- स्थानीय बोर्ड को कार्य करने तथा आय के साधन दिए गए
- जिला बोर्डों का गठन किया गया |
- सरकारी हस्तक्षेप की अनुमति कार्यों की समीक्षा करने तक ही सीमित कर दी गई |
- बाद में भारत शासन अधिनियम 1919 के द्वारा स्थानीय स्वशासन को एक हस्तांतरित विषय में परिवर्तित कर दिया गया और इन संस्थाओं को अपने विकास कार्य करने की अनुमति दे दी गई तथा भारत शासन अधिनियम 1935 के द्वारा उन संस्थाओं को और सुदृढ़ बनाने का प्रयास किया गया |
भारत में स्थानीय स्वशासन की पृष्ठभूमि
- गांधीजी ग्राम स्वराज्य के पक्षधर थे अतः संविधान सभा ने राज्य के नीति निर्देशक तत्वों के तहत अनुच्छेद 40 में ग्राम पंचायतों का प्रावधान करके राज्यों को इनका गठन करने की शक्ति प्रदान कर दी |
- अतः स्वतंत्रा की प्राप्ति के बाद पंचायती राज व्यवस्था के लिए प्रयास आरंभ हुएउसके लिए केंद्र में पंचायती राज्य एवं सामुदायिक विकास मंत्रालय का गठन किया गया तथा एस के डे को इस विभाग का मंत्री बनाया गया |
- जिसके तहत पहली बार 2 अक्टूबर 1952 को सामुदायिक विकास कार्यक्रम विकास में जनता की सहभागिता के उद्देश्य को लेकरप्रारंभ किया गया लेकिन यह अपने उद्देश्यों को प्राप्त करने में असफल रहा अतः 1 साल बाद 2 अक्टूबर 1953 को राष्ट्रीय प्रसार सेवा कार्यक्रम प्रारंभ किया गया जो सफल ना हो सका |
विभिन्न राज्यों में पंचायती स्तर
- एक स्तरीय (केवल ग्राम पंचायतें) – केरल, त्रिपुरा, सिक्किम, मणिपुर, जम्मू-कश्मीर |
- द्विस्तरीय (ग्राम पंचायत एवं पंचायत समिति) – असम, कर्नाटक, उड़ीसा, हरियाणा, दिल्ली, पुदुच्चेरी |
- त्रिस्तरीय (ग्राम पंचायत पंचायत समिति जिला परिषद) – उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, हिमाचल प्रदेश, गुजरात, गोवा |
- चार स्तरीय (ग्राम पंचायत अंचल पंचायत आंचलिक परिषद जिला परिषद) पश्चिम बंगाल |
- जनजातीय परिषद – मेघालय, नागालैंड, मिजोरम |
विभिन्न राज्यों में पंचायत समिति के नाम
नाम | राज्य |
पंचायत समिति | बिहार पंजाब राजस्थान महाराष्ट्र |
मंडल पंचायत | आंध्र प्रदेश |
पंचायत यूनियन | तमिलनाडु |
आंचलिक परिषद | पश्चिम बंगाल |
आंचलिक पंचायत | असम |
जनपद पंचायत | मध्य प्रदेश |
तालुका विकास बोर्ड | कर्नाटक |
क्षेत्रमिति | उत्तर प्रदेश |
अंचल समिति | अरुणाचल प्रदेश |
ग्राम सभा
- ग्राम सभा किसी एक गांव या पंचायत का चुनाव करने वाले गाँवों के समूह की मतदाता सूची में शामिल व्यक्तियों से मिलकर बनी संस्था है।
- ग्राम सभा पंचायती राज की मूलभूत इकाई है। यह ग्राम सभा प्रत्येक राजस्व ग्राम या वन ग्राम में उस गाँव के वयस्क मतदाताओं को मिलाकर तैयार की जाती है।
ग्राम सभा की संरचना
- संविधान के अनुच्छेद 243 (A) में ग्रामसभा का प्रावधान है जो कि 200 या उससे अधिक सदस्यों से मिलकर बनती है, जिसके तहत गांव की मतदाता सूची में पंजीकृत सभी मतदाता ग्राम सभा के सदस्य होते हैं या ग्राम स्तर के सभी कार्य करती है जो राज्य विधानमंडल करता है ग्राम सभा की बैठक वर्ष में कम से कम 2 बार होना आवश्यक है तथा कुछ विशेष परिस्थितियों में बैठक बुलाई जा सकती है |
- प्रत्येक ग्राम सभा में एक अध्यक्ष होगा, जो ग्राम प्रधान, सरपंच अथवा मुखिया कहलाता है, तथा कुछ अन्य सदस्य होंगे। ग्राम सभा में 1000 की आबादी तक 1 ग्राम पंचायत सदस्य (वार्ड सदस्य), 2000की आबादी तक 11 सदस्य तथा 3000 की आबादी तक 15 सदस्य होंगे|
ग्राम सभा की बैठक
- ग्राम सभा की बैठक वर्ष में दो बार होनी जरूरी है। इस बारे में सदस्यों को सूचना बैठक से 15 दिन पूर्व नोटिस से देनी होती है। ग्राम सभा की बैठक को बुलाने का अधिकार ग्राम प्रधान को है। वह किसी समय आसामान्य बैठक का भी आयोजन कर सकता है|
- ग्राम सभा में एक साल में दो बैठकें ज़रूर होती हैं, जिसमें एक बैठक ख़रीफ़ की फसल कटने के बाद तथा दूसरी रबी की फसल काटने के तुरन्त बाद सम्पन्न होती है|
- ग्राम सभा की अध्यक्षता प्रधान या उसकी गैरमूजदगी में उपप्रधान करता है। दोनों की अनुपस्थिति में ग्राम पंचायत के किसी सदस्य को प्रधान द्वारा मनोनीत किया जा सकता है||
- जि़ला पंचायत राज अधिकारी या क्षेत्र पंचायत द्वारा लिखित रूप से मांग करने पर अथवा ग्राम सभा के सदस्यों की मांग पर प्रधान द्वारा 30 दिनों के भीतर बैठक बुलाया जाएगा|
- यदि ग्राम प्रधान बैठक आयोजित नहीं करता है तो यह बैठक उस तारीख़ के 60 दिनों के भीतर होगी, जिस तारीख़ को प्रधान से बैठक बुलाने की मांग की गई है।
- ग्राम सभा की बैठक के लिए कुल सदस्यों की संख्या के 5वें भाग की उपस्थिति आवश्यक होती है। लेकिन यदि गणपूर्ति (कोरम) के अभाव के कारण बैठक न हो सके तो इसके लिए दुबारा बैठक का आयोजन किया जा सकता है|
पंचायतों का गठन
पंचायती राज नोट्स – अनुच्छेद 243 (B)पंचायतों के गठन के ग्राम स्तर, मध्यवर्ती तथा जिला स्तर के प्रावधान करता है तथा जिन राज्यों की जनसंख्या 20 लाख से कम है वहां मध्य स्तर की पंचायत का गठन नहीं किया जाएगा |
- सबसे निचले स्तर पर ग्राम सभा और ग्राम पंचायत
- मध्यवर्ती पंचायत
- जिला पंचायत जिला स्तर पर
पंचायतों की संरचना
- अनुच्छेद 243 (C) के अनुसार ग्राम पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव ग्राम सभा में पंजीकृत मतदाता द्वारा प्रत्यक्ष रुप से होता है तथा मध्यवर्ती पंचायत जिला पंचायत के अध्यक्षों का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से पंचायत द्वारा चुने गए सदस्यों से होता है |
- ग्राम पंचायत के अध्यक्ष के चुनाव की प्रक्रिया राज्य द्वारा निर्धारित रीति के अनुसार की जाएगी, ग्राम पंचायत के अध्यक्ष मध्यवर्ती पंचायत का सदस्य होता है |
- जहां मध्यवर्ती पंचायत नहीं है वहां जिला पंचायत का सदस्य होगा तथा मध्यवर्ती पंचायत का अध्यक्ष जिला पंचायत का सदस्य होगा तथा उस क्षेत्र के सांसद व विधायक अपने क्षेत्र में मध्यवर्ती स्तर के सदस्य होते हैं तथा राज्यसभा और विधानसभा के सदस्य जहां पर पंजीकृत है| उस क्षेत्र के मध्यवर्ती पंचायत के सदस्य होंगे पंचायत के अध्यक्ष, सांसद विधायक को पंचायतों के अधिवेशन में मत देने का अधिकार होता है |
स्थानों का आरक्षण
- अनुच्छेद 243(D) के अनुसार प्रत्येक पंचायतों में अनुसूचित जातियों/जनजातियों के लिए स्थान आरक्षित होंगे जो कि उनकी जनसंख्या के अनुपात में होगा (अगर जनजाति की जनसंख्या का 20% है तो स्थान भी 20% आरक्षित होंगे) तथा यह स्थान चक्रानुक्रम के आधार पर आवंटित होंगे |
- इसी तरह ⅓ स्थान अनुसूचित जातियों जनजातियों की महिलाओं के लिए आरक्षित होंगे तथा प्रत्येक पंचायत के प्रत्यक्ष निर्वाचन द्वारा भरे जाने वाले पद कुल संख्या का ⅓ भाग स्त्रियों के लिए आरक्षित होंगे जिसमें अनुसूचित जाति जनजाति की स्त्रियों के लिए भी आरक्षित स्थान होंगे |
- यह आरक्षण चक्रानुक्रम में मिलेगा तथा राज्य पिछड़े वर्ग के लिए किसी भी समय पंचायतों के अध्यक्ष पद के लिए स्थान आरक्षित कर सकेगा, और अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण की कोई बात अरुणाचल प्रदेश में लागू नहीं होगी |
- अगस्त 2009 में केंद्र सरकार ने भी 50% आरक्षण देने की मंजूरी प्रदान कर दी |
- कुछ राज्यों जैसे-बिहार, मध्य प्रदेश, केरल, उड़ीसा, हिमाचल प्रदेश, छत्तीसगढ़, मणिपुर, उत्तराखंड, राजस्थान में महिलाओं को पंचायती राज्य संस्था में 50% आरक्षण दिया जाएगा तथा बिहार में सर्वप्रथम 50% आरक्षण महिलाओं को दिया गया है |
पंचायतों का कार्यकाल
- संविधान के अनुच्छेद 243 (E) में पंचायतों के कार्यकाल की अवधि निर्धारित की गई है प्रत्येक पंचायत अपनी प्रथम बैठक की तारीख से 5 वर्ष तक रहेगी तथा उसे समय से पहले भी भंग किया जा सकता है |ऐसी स्थिति में चुनाव छह माह के अंदर कराना अनिवार्य होंगे अगर ग्राम सभा निर्धारित समय से पूर्व भंग होती है किंतु कार्यकाल 6 माह से अधिक हो तो शेष बचे कार्यकाल के लिए चुनाव कराए जाएंगे और यदि कार्य का छह माह से कम बचा है तो चुनाव नहीं कराए जा सकते हैं |
सदस्यों के लिए योग्यताएं
- कोई भी व्यक्ति सदस्य के रूप में चुना जा सकता है यदि वह राज्य विधानमंडल के सदस्य के रूप में चुने जाने के लिए योग्य है परंतु आयु की अपेक्षा नहीं रखता हो क्योंकि नगरपालिका के लिए आयु 25 वर्ष है 21 वर्ष नहीं |
पंचायतों की शक्ति प्राधिकार, उत्तरदायित्व
- राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा पंचायतों को ऐसी शक्तियां प्रदान करेगा जो उन्हें स्वशासन के रूप में कार्य करने के लिए समक्ष बना सके|
- जिससे वे आर्थिक विकास और सामाजिक न्याय के लिए योजनाएं बना सके और उन्हें क्रियान्वित कर सकें और इसके अनुसार ग्यारहवीं अनुसूची में वर्णित सभी कार्यों को पंचायतों को क्रियांवित करना है |
कर लगाने की शक्ति
- राज्य का विधानमंडल विधि द्वारा ऐसे कर जो शुल्क, पथकर, फ़ीसें, उदग्रहित, संग्रहित तथा विनियोजित करने का पंचायत को अधिकार दिया गया है तथा राज्यों के द्वारा अनुदान और केंद्र व राज्य सरकार द्वारा विकास कार्यों के लिए आवंटित की गई राशि और ऐसी निधियों को जमा करने के लिए पंचायत निधि कोष का गठन करना |
वित्त आयोग
- अनुच्छेद 243 (I) के तहत राज्य का राज्यपाल प्रत्येक 5 वर्ष की अवधि पर पंचायतों की वित्तीय स्थिति का पुनर्विलोकन करने के लिए एक वित्त आयोग का गठन करेगा जो राज्यपाल को अपनी सिफारिश देगा जिसे राज्यपाल विधानमंडल में रखवाएगा | आयोग निम्न मामलों में अपनी सिफारिश देगा –
- राज्य द्वारा लगाए गए करो, पथकरो व शुल्कों का पंचायत और राज्यों के मध्य वितरण |
- पंचायत को सौपे जाने वाले कर के बारे में |
- वित्तीय स्थिति सुधारने के क्या आवश्यक उपाय हैं |
- अन्य ऐसे विषय जो राज्यपाल निर्धारित करें |
पंचायतों के लिए निर्वाचन
- पंचायतों के लिए कराए जाने वाले चुनाव के लिए एक राज्यपाल निर्वाचन आयोग जिसकी नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की जाएगी |
- यह आयोग पंचायतों के लिए चुनाव द्वारा पर्यवेक्षण निर्देशन नियंत्रण करता है| राज्य निर्वाचन आयुक्त की सेवा शर्तें ऐसी होंगी जो राज्य का राज्यपाल निर्धारित करें तथा नियुक्ति के बाद सेवा शर्तों में कोई अलाभकारी परिवर्तन नहीं किया जाएगा |
- राज्य निर्वाचन आयुक्त को साबित कदाचार के आधार पर ही पद से हटा सकते हैं तथा हटाने की विधि उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को हटाने की विधि जैसी होगी |
- 73 संविधान संशोधन अधिनियम के लागू होने की तारीख (24 अप्रैल, 1993) से 1 वर्ष के अंदर सभी राज्यों को नई पंचायती राज प्रणाली को अपनाना होगा तथा पहले से गठित पंचायत अपने कार्यकाल की समाप्ति तक रहेगी, अगर राज्य द्वारा उन्हें भंग ना किया जाए |
- न्यायालय के हस्तक्षेप का वर्जन से तात्पर्य ऐसी विधि की मान्यता से है जो निर्वाचन क्षेत्रों का परिसीमन, स्थानों का आवंटन से संबंधित मामले को किसी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जाएगी |
- राज्य विधानमंडल पंचायतों के लेखओं की परीक्षा कर सकता है |
राज्य क्षेत्रों में पंचायत अधिनियम का लागू नहीं होना
- यह अधिनियम मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्र जहां जिला परिषद हो वहां, तथा मेघालय, मिजोरम, नागालैंड और जम्मू कश्मीर तथा पश्चिमी बंगाल के दार्जिलिंग जिले के पर्वतीय क्षेत्र जहां दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद विद्यमान है, वहां लागू नहीं होंगे |
पंचायत के अनिवार्य कार्य
- पेयजल की व्यवस्था करना |
- प्राथमिक एवं माध्यमिक शिक्षा का प्रबंधन करना |
चिकित्सा एवं स्वास्थ्य की रक्षा की व्यवस्था | - सड़के व नालियों को बनवाना |
- हाथ में बाजारों का प्रबंधन करना |
- सार्वजनिक स्थानों की व्यवस्था करना |
- महिला एवं बाल कल्याण से जुड़े कार्यों का प्रबंधन |
- लोक व्यवस्था में सरकार को सहायता प्रदान करना |
- कृषि एवं भूमिका विकास |
- ग्रामीण विकास के कार्यों को सहयोग प्रदान करना |
पंचायत के स्वैच्छिक कार्य
- पुस्तकालय एवं वाचनालय की स्थापना करना |
- सड़कों के किनारे पर पौधारोपण करना |
- मनोरंजन के साधनों का प्रबंधन करना |
- प्राकृतिक आपदाओं के समय मदद पहुंचाना |
- रोजगारोन्मुख कार्यों का प्रबंधन करना |
विकासात्मक कार्य
पंचायतों के आर्थिक विकास से जुड़े कार्य को ग्यारहवीं अनुसूची में वर्णित किया गया है |
- भूमि सुधार कानून का कार्यान्वयन करना |
- सिंचाई का प्रबंध करना |
- सार्वजनिक वितरण प्रणाली में सहायता करना |
- लघु एवं कुटीर उद्योग का विकास करना |
- तकनीकी प्रशिक्षण एवं व्यवसायिक शिक्षा का प्रबंध करना |
ग्राम पंचायत निधि कोष
प्रत्येक ग्राम पंचायत के लिए कुछ होता है जो पंचायत के आय व्यय का लेखा होता है इसका संचालन ग्राम प्रधान तथा पंचायत विकास अधिकारी के माध्यम से होता है |
न्याय पंचायत
ग्राम वासियों को सस्ता और शीघ्र न्याय प्रदान करने के उद्देश्य से 73वें संविधान संशोधन द्वारा एक न्याय पंचायत की व्यवस्था की गई प्राय तीन चार पंचायतों के लिए एक न्याय पंचायत होगी जिसके कुछ सदस्य मनोनीत तथा कुछ निर्वाचन पंचायतों के द्वारा होगा इसकी अधिकारिता छोटे दीवानी व फौजदारी मामलों तक सीमित होगी तथा दंड स्वरूप यह केवल ₹50 से लेकर ₹8000 तक जुर्माना लगा सकती है |
पंचायत क्षेत्र समिति
- पंचायती राज व्यवस्था में ग्राम और जिला स्तर के मध्य पंचायत समितियों का गठन किया गया जो ग्राम व जिला पंचायत के बीच के संबंध में बना सकें
- ग्राम पंचायतों के सरपंच इन समितियों के सदस्य होते हैं तथा इसके अध्यक्ष का चुनाव इन सदस्यों द्वारा प्रत्यक्ष रुप से किया जाता है |
- इन समितियों का कार्यकाल भी 5 वर्ष होता है तथा समय पूर्व भंग होने की स्थिति में चुनाव 6 माह के अंदर कराना अनिवार्य है |
पंचायत क्षेत्र या समिति के कार्य
- ग्रामीण विकास के कार्यक्रमों का क्रियान्वयन तथा मूल्यांकन करना |
- बीज केंद्रों का संचालन |
- प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों का संचालन |
- वितरण तथा गोदामों का निरीक्षण |
- कृषि के लिए ऋण की व्यवस्था |
- कुटीर तथा लघु गृह उद्योगों का विकास |
- शौचालयों का निर्माण |
- गोबर गैस तथा धुआं रहित चूल्हों का वितरण |
- कीटनाशक दवाओं का वितरण |
पंचायत क्षेत्र समिति के आय के स्त्रोत
-
- राज्य सरकार से प्राप्त अनुदान |
- स्थानीय कर |
- मंडियों से प्राप्त फीस |
- दान व चंदे |
- जिला पंचायत द्वारा दिया गया तदर्थ अनुदान |
- क्षेत्र पंचायत द्वारा लगाए गए कर |
- घाटो तथा मेलों से प्राप्त आय |
- सरकार द्वारा योजनाओं के क्रियान्वयन के लिए दी गई धनराशि |
ई-पंचायत
- सरकार ने सभी पंचायतों को समक्ष बनाने के लिए पंचायत मिशन मोड परियोजना का शुभारंभ किया जिससे पंचायतों में पारदर्शिता, सूचनाओं का आदान-प्रदान, सेवाओं का कुशल वितरण तथा पंचायतों के प्रबंधन में गुणवत्ता तथा पारदर्शिता को सुनिश्चित किया जा सके |
- यह पंचायत एवं एम एमपी के अधीन 11 कोर आम सॉफ्टवेयर की योजना है जिस के अनुप्रयोगों में PRIA शॉर्ट, प्लान प्लस, राष्ट्रीय पंचायत पोर्टल तथा स्थानीय शासन विवरणिका है | अप्रैल 2012 में राष्ट्रीय पंचायत दिवस को प्रारंभ किया गया है यह योजना सभी राज्यों का संघ शासित प्रदेशों के 45 जिले तथा 128 पंचायतों में कार्यान्वित हो रही है |
ई-पंचायत
- प्रोग्राम एंड प्रोजेक्ट मैनेजमेंट
- कंटेंट मैनेजमेंट
- कैपेसिटी बिल्डिंग
- कनेक्टिविटी
- कंप्यूटर इंफ्रास्ट्रक्चर
- बिजनेस रीइंजीनियरिंग
- इंफॉर्मेशन एंड सर्विस नीड एसेसमेंट
ई-पंचायत के उद्देश्य
- पंचायतों में पारदर्शिता लाना |
- पंचायतों की निर्णय प्रक्रिया में सुधार करना |
- आईटी का प्रयोग करने के लिए समक्ष बनाना |
इन योजनाओं के नेतृत्व केंद्र तथा क्रियान्वयन राज्यों द्वारा किया जा रहा है जोकि एम एमपी कार्यान्वयन के लिए त्रिस्तरीय कार्यक्रम है |
- केंद्र स्तरीय
- राज्य स्तरीय
- जिला स्तरीय
मिशन मोड परियोजना के कार्य
- व्यापार के लिए अनापत्ति प्रमाण पत्र जारी करना |
- आवास संबंधी कार्य |
- जन्म मृत्यु तथा आयकर के प्रमाण पत्र बनाना |
- पंचायतों के आंतरिक कार्य का निर्वहन तथा कार्य सूची तैयार करना |
ई-पंचायत द्वारा प्रदान की गई सुविधाएं
- शिकायत निवारण तंत्र |
- योजना का ऑनलाइन क्रियान्वयन व देखरेख |
- मांग प्रबंधन प्रशिक्षण |
- पंचायतों के लिए विशिष्ट कोड प्रदान करना |
- पंचायतों का लेखांकन करना |
- सामाजिक जननांकीय प्रोफाइल |
- समन्वित जिला योजना का प्रारूप तैयार करना |
- मध्य प्रदेश तथा पंजाब में इ पंचायत समाज का गठन किया गया |
ग्राम पंचायत के प्रमुख पद से हटाने की प्रक्रिया
- ग्राम पंचायत प्रमुख को अपने कार्यकाल पूरा होने से पहले भी पदच्युत किया जा सकता है अविश्वास प्रस्ताव जिस पर ग्राम सभा के आधे सदस्यों के हस्ताक्षर तथा पद से हटाने के कारणों का उल्लेख कर आवेदन को जिला पंचायत अधिकारी के समक्ष प्रस्तुत करना होता है |
- सूचना मिलने की तारीख से जिला पंचायत अधिकारी 3 दिन के अंदर ग्राम सभा की बैठक बुलाएगा जिसकी सूचना कम से कम 15 दिन पहले दी जाएगी अगर प्रस्ताव बैठक में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों के ⅔ बहुमत से पारित हो जाता है तो ग्राम पंचायत प्रमुख को पद छोड़ना पड़ता है |
- अगर प्रस्ताव गणपूर्ति की अभाव में पारित नहीं हो पाता तो 1 वर्ष अविश्वास प्रस्ताव नहीं लाया जा सकता और यदि वर्तमान पंचायत का कार्यकाल 1 साल रह गया हो तब भी अविश्वास नहीं लाया जाएगा |
ग्राम पंचायत की समितियां
समितियां |
कार्य |
नियोजन एवं विकास समिति | योजना निर्माण, गरीबी उन्मूलन कार्यक्रम का संचालन, कृषि, पशुपालन आदि | |
शिक्षा समिति | प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा संबंधी कार्य | |
स्वास्थ्य एवं कल्याण समिति | परिवार कल्याण, चिकित्सा, स्वास्थ्य, समाज कल्याण, अनुसूचित जाति, जनजाति तथा अन्य पिछड़े वर्ग का संरक्षण | |
निर्माण कार्य समिति | निर्माण कार्यों की गुणवत्ता जांचना | |
प्रशासनिक समिति | प्रशासनिक संबंधित सभी कार्य | |
जल प्रबंधन समिति | पेयजल तथा नलकूप संबंधी कार्य | |
पंचायतों की आय के स्त्रोत
- मनोरंजन कर |
- चूल्हा कर |
- दुग्ध उत्पादन कर |
- पशुओं की पंजीकरण फीस |
- व्यापार तथा रोजगार कर |
- संपत्ति के क्रय विक्रय पर कर |
- कूड़ा करकट तथा मृत पशुओं की बिक्री से आय |
- सड़क को नालियों की सफाई तथा प्रकाश पर कर |
- मछली तालाब से प्राप्त आय |
- गांव के मेले बाजार आदि पर कर |
- पशु वाहन आदि पर कर |
- राज्य सरकार द्वारा अनुदान |
- भू-राजस्व की धनराशि के अनुसार 25% से 50% तक आय कर |
विभिन्न दल व समितियां
समिति का नाम |
वर्ष |
संबंध |
वी आर राव | 1960 | कमेटी ऑन रेशनलाइजेशन ऑफ पंचायत स्टेटिस्टिक्स |
एस डी मिश्रा | 1961 | वर्किंग ग्रुप ऑन पंचायत एंड कोऑपरेटिव्स |
वी ईश्वरन | 1961 | स्टडी टीम ऑन पंचायती राज एडमिनिस्ट्रेशन |
जी आर राजगोपाल | 1962 | स्टडी टीम ऑन न्याय पंचायत्स |
आर आर दिवाकर | 1963 | स्टडी टीम ऑन पोजीशन ऑफ ग्रामसभा इन पंचायती राज मूवमेंट |
एम राम कृष्णया | 1963 | स्टडी टीम ऑन बजटिंग एंड एकाउंटिंग प्रोसीजर ऑफ पंचायती राज इंस्टिट्यूशन |
के संथानम | 1963 | स्टडी टीम ऑन पंचायती राज फाइनेंसेज |
आर के खन्ना | 1965 | स्टडी टीम ऑन पंचायती ऑडिट एंड एकाउंट्स ऑफ पंचायती राज बॉडीज |
जी रामचंद्रन | 1966 | कमेटी ऑन पंचायती राज ट्रेनिंग सेंटर |
वी रामनाथन | 1969 | स्टडी टीम ऑन इंवॉल्वमेंट ऑफ डेवलपमेंट एजेंसी एंड पंचायती राज इंस्टिट्यूशन इन दि इंप्लीमेंटेशन ऑफ बेसिक लैंड रिफॉर्म मेजर्स |
एन रामा कृष्णय्या | 1972 | वर्किंग ग्रुप फॉर फार्मूलेशन ऑफ फिफ्थ फाइव ईयर प्लान ऑन कम्युनिटी डेवलपमेंट एंड पंचायती राज |
श्रीमती दया चौबे | 1976 | कमेटी ऑन कम्युनिटी डेवलपमेंट एंड पंचायती राज |
बलवंत राय मेहता समिति (1957-58)
सामुदायिक विकास कार्यक्रम 1952 तथा राष्ट्रीय प्रसार सेवा कार्यक्रम 1953 की असफलता की जांच करने के लिए भारत सरकार ने 1957 ईस्वी में बलवंत राय मेहता समिति की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट 1958 में सरकार को सौंप दी समिति ने जनतांत्रिक विकेंद्रीकरण की सिफारिश की जिसे पंचायती राज कहा गया इसकी निम्न सिफारिश है
- त्रिस्तरीय पंचायती राज प्रणाली की स्थापना की जाए
(i) ग्राम पंचायत
(ii) पंचायत समिति
(iii) जिला पंचायत
- तीनों को एक दूसरे से अप्रत्यक्ष चुनाव के माध्यम से जोड़ा जाए |
- ग्राम पंचायत का चुनाव प्रत्यक्ष रुप से तथा पंचायत समिति और जिला पंचायत का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से हो |
- विकास व नियोजन से जुड़े सभी कार्यों को इन संस्थाओं को हस्तांतरित किया जाए |
- पंचायत समिति को कार्यकारी निकाय तथा जिला पंचायत को पर्यवेक्षी समन्वयात्मक तथा सलाहकारी निकाय बनाया जाए |
- जिला कलेक्टर को जिला पंचायत का अध्यक्ष बनाया जाए |
- विकास कार्य करने के लिए पर्याप्त वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जाएं |
अतः समिति की सिफारिशों को 1958 में स्वीकार कर लिया गया जिसके तहत सर्वप्रथम पंचायती राज व्यवस्था का शुभारंभ भारत के प्रथम प्रधानमंत्री श्री जवाहरलाल नेहरू द्वारा राजस्थान के नागौर जिले से 2 अक्टूबर 1959 को हुआ इसके बाद कई राज्यों ने अपने यहां इस प्रणाली का शुभारंभ किया जैसे
- आंध्र प्रदेश – 1959
- कर्नाटक, तमिलनाडु, असम – 1960
- महाराष्ट्र – 1962
- गुजरात – 1963
- पश्चिम बंगाल – 1964
परंतु सभी राज्यों में पंचायतों के स्तर भिन्न भिन्न न थी |
अशोक मेहता समिति (1977-78)
पंचायती राज्य संस्थाओं के संबंध में 1977 में जनता पार्टी की सरकार ने अशोक मेहता की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया जिसने अपनी रिपोर्ट 1978 में सरकार को सौंप दिए समिति ने निम्न सिफारिशें सरकार को सौंपी |
- त्रिस्तरीय प्रणाली को समाप्त कर द्विस्तरीय प्रणाली अपनाई जाए 15000-20000 की जनसंख्या पर मंडल पंचायत का गठन किया जाए तथा ग्राम पंचायतों को समाप्त किया जाए |
- जिले को विकेंद्रीकरण का प्रथम स्थान माना जाए |
- पंचायत चुनाव राजनीतिक दल के आधार पर होने चाहिए |
- जिला स्तर के नियोजन के लिए जिले को ही जवाबदेही बनाया जाए तथा जिला परिषद एक कार्यकारी निकाय हो |
- पंचायतों को कर लगाने की शक्ति हो जिससे वित्तीय संस्थाओं को जुटाया जाए |
- जिला स्तर की एजेंसी से पंचायतों के लेखों की संपरीक्षा होनी चाहिए |
- न्याय पंचायतों को पंचायतों से अलग रखा जाए, जिसका प्रमुख न्यायाधीश हो |
- राज्य पंचायतों का अतिक्रमण ना करें अगर करें तो 6 माह के अंदर चुनाव होने चाहिए |
- भारत के मुख्य चुनाव आयुक्त की सलाह पर राज्य के मुख्य चुनाव आयुक्त को चुनाव कराना चाहिए |
- विकास के कार्य जिला परिषद को दिए जाएं |
- राज्य में पंचायती राज्य मंत्रालय का गठन किया जाए तथा एक पंचायत मंत्री की नियुक्ति की जाए |
- अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए जनसंख्या के आधार पर सीटों का आरक्षण हो |
एल एम सिंघवी समिति
1986 में राजीव गांधी सरकार द्वारा ‘रिवाइटलाइजेशन ऑफ पंचायती राज इंस्टीट्यूशंस फॉर डेमोक्रेसी एंड डेवलपमेंट’ विषय पर एल एम सिंघवी की अध्यक्षता में एक समिति का गठन किया | इस समिति ने निम्न सिफारिशें सरकार को सौंपी |
- पंचायती राज्य संस्थाओं को संवैधानिक दर्जा दिया जाए और संविधान में इसके लिए अलग अध्याय को जोड़ा जाए तथा इन संस्थाओं के नियमित चुनाव के लिए संविधान में प्रावधान किया जाए |
- कई गांवों को मिलाकर न्याय पंचायतों का गठन किया जाए |
- पंचायतों के लिए कई गांवों का पुनर्गठन किया जाए |
- पंचायतों को वित्तीय संसाधन उपलब्ध कराए जाएं |
- पंचायतों से जुड़े मामलों (जैसे चुनाव, समय से पूर्व पंचायतें भंग करने तथा कार्यप्रणाली) को हल करने के लिए राज्य में न्यायिक अधिकरण की स्थापना की जाए |
पी के थुंगन समिति
- इस समिति का गठन 1989 में पंचायती राज्य संस्थाओं पर विचार करने के लिए किया गया तथा इस समिति ने भी पंचायतों को संवैधानिक दर्जा दिए जाने की सिफारिश की |
जी वी के राव समिति- 1985-86
- योजना आयोग ने जी बी के राव की अध्यक्षता में 1985 में ग्रामीण विकास और गरीबी उन्मूलन कार्यक्रमों के लिए प्रशासनिक प्रबंधन विषय पर एक समिति का गठन किया गया तथा समिति ने अपनी रिपोर्ट 1988 में सरकार को सौंप दी और कहा कि लोकतांत्रिकरण की जगह विकासात्मक प्रशासन पर नौकरशाही की छाया पड़ने से पंचायती राज की संस्थाएं निर्बल हुई है तथा उनकी स्थिति बिना जड़ के घास जैसी हो गई है |
- समिति ने विकेंद्रीकरण के तहत नियोजन एवं विकास कार्य में पंचायतों की भूमिका को बल प्रदान किया इसी के तहत जी बी के राव समिति की सिफारिशें, दांतवाला समिति 1978 जो कि ब्लॉक नियोजन से संबंधित थी तथा 1984 में जिला स्तर के नियोजन से संबंधित हनुमंत राव समिति की रिपोर्ट से भिन्न है |
- अतः दांतवाला और हनुमंत राव समिति ने सिफारिश की थी विकेंद्रीकृत नियोजन के कार्यों को जिला स्तर पर ही किया जाए तथा हनुमंत राव समिति ने मंत्री या जिला कलेक्टर के अधीन जिला नियोजन संगठन की सिफारिश की अतः जिला कलेक्टर की भूमिका को आवश्यक माना तथा पंचायतों की भूमिका बढ़ाने की आवश्यकता पर बल दिया |
जी बी के राव समिति की सिफारिशें
जी बी के राव समिति ने निम्न सिफारिशें प्रस्तुत की जो कि निम्न है
- विकेंद्रीकरण की प्रक्रिया में जिला परिषद की सशक्त भूमिका होनी चाहिए, क्योंकि नियोजन एवं विकास कार्य के लिए जिला एक उपयुक्त स्तर है |
- विकास कार्यक्रमों का पर्यवेक्षण नियोजन कार्यालय जिला या उसके निचले स्तर की पंचायती संस्थाओं द्वारा किया जाना चाहिए |
- जिला विकास आयुक्त के पद का सृजन किया जाए तथा उसे जिले के विकास कार्यों का प्रभारी बनाया जाए |
- नियमित चुनाव कराने चाहिए |
- राज्य स्तर पर राज्य विकास परिषद, जिला स्तर पर जिला विकास परिषद, मंडल स्तर पर मंडल पंचायत तथा ग्राम स्तर पर ग्राम सभा की सिफारिश की |
जिला पंचायत परिषद
- जिला पंचायत/जिला परिषद पंचायती राज व्यवस्था में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है जो अपने अधीन कार्य करने वाले पंचायती संस्थाओं तथा राज्य सरकार के मध्य की एक कड़ी है |
- खंड स्तर की पंचायतों के प्रमुख जिला पंचायत के सदस्य होते हैं तथा अध्यक्ष का चुनाव में सदस्य द्वारा अप्रत्यक्ष पद्धति से किया जाता है तथा सांसद विधायक लोक सभा विधान मंडल परिषद के सदस्य होते हैं |
- जिला परिषद का कार्यकाल 5 वर्ष होता है तथा इसे समय से पहले भंग करने पर चुनाव 6 माह के अंदर कराना आवश्यक है |
- जिला परिषद – उड़ीसा, बिहार, महाराष्ट्र, राजस्थान, उत्तर प्रदेश |
- महा कोमा परिषद – असोम |
- जिला पंचायत – मध्य प्रदेश, गुजरात |
- जिला विकास परिषद – कर्नाटक, तमिलनाडु |
जिला पंचायत के कार्य
- जिले के सभी ग्राम पंचायत तथा पंचायत समितियों के बीच समन्वय बनाए रखना |
- राज्य सरकार द्वारा दिए गए अनुदान को पंचायत समितियों में वितरित करना |
- पंचायत समितियों के बजट का पर्यवेक्षण करना |
- कृषि विकास के लिए कार्य करना |
- आर्थिक व सामाजिक विकास के कार्य करना |
- ग्राम नियोजन जन स्वास्थ्य तथा शिक्षा व्यवस्था के लिए कार्य करना |
- प्राकृतिक आपदा वाले क्षेत्रों के लिए विशेष कार्यक्रम बनाना |
जिला पंचायत के आय के स्रोत
- केंद्र व राज्य सरकार द्वारा दिया गया अनुदान |
- जिला पंचायत द्वारा क्षेत्रीय पंचायतों से की गई वसूली |
- राजस्व का हिस्सा |
- अखिल भारतीय संस्थाओं द्वारा दिया गया अनुदान |
- प्रशासनिक ट्रस्ट्रो से प्राप्त आय |