65 से अधिक देशों ने वैश्विक हथियार कारोबार को नियमित करने के लिए अंतरराष्ट्रीय शस्त्र व्यापार संधि (Arms Trade Treaty – ATT) पर 3 जून, 2013 को हस्ताक्षर किए। इस संधि का मुख्य उद्देश्य हथियारों को मानवाधिकार का उल्लंघन करने वाले तथा अपराधियों के हाथों में पहुंचने से बचाना है। इसमें भारत का पक्ष अनिश्चित है।
चीन, रूस और विश्व में हथियारों के सबसे बड़े सौदागर अमेरिका ने इस संधि पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं। अमेरिका के विदेशमंत्री जान केरी ने हथियार व्यापार संधि पर जल्दी ही हस्ताक्षर करने का आश्वासन दिया है। अमेरिका के विदेशमंत्री जॉन कैरी ने कहा कि दुनिया में हथियारों के सबसे बड़े डीलर अमेरिका का इस संधि पर हस्ताक्षर करना बहुत महत्वपूर्ण होगा।
रूस की सबसे बड़ी आपत्ति यह है की इस संधि में अनधिकृत गैर सरकारी संगठनों को हथियारों की आपूर्ति पर प्रतिबंध लगाने का कोई प्रावधान नहीं है।
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हथियार व्यापार संधि की पुष्टि करने वाले देशों को राष्ट्रीय स्तर पर पारंपरिक हथियारों एवं इनके घटकों के व्यापार के लिए तथा इस व्यापार के दलालों के लिए नियम बनाने होंगे। इस संधि का असर किसी देश में हथियारों के आंतरिक व्यापार पर नहीं पड़ेगा। वैश्विक हथियार व्यापार 60 से 85 अरब डॉलर का है।
विदित हो कि संयुक्त राष्ट्र महासभा ने 2 अप्रैल, 2013 को भारी बहुमत से इस संधि का अनुमोदन किया था। ये संधि तभी लागू हो सकती है, जब संयुक्त राष्ट्र संघ के 50 सदस्य देश इसका अनुमोदन करें। हालांकि यह संधि तभी लागू होगी जब कम से कम 50 देश इसकी पुष्टि कर देंगे।
मुख्य तथ्य:
- 193 सदस्य देशों वाली संयुक्त राष्ट्र की आम सभा ने 2 अप्रैल, 2013 को विश्व की प्रथम संयुक्त राष्ट्र शस्त्र व्यापार संधि (ATT & Arms Trade Treaty) की भारी बहुमत से स्वीकृति प्रदान कर दी। इस संधि के पक्ष में 154 देशों ने मत डाले जबकि तीन ने इसके विरोध में और 28 देशों ने इस संधि पर मत नहीं डालने का फैसला किया।
- यह एक बहुपक्षीय संधि है जिसके अंतर्गत विश्व में प्रतिवर्ष होने वाले लगभग 70 अरब डॉलर के परंपरागत शस्त्र व्यापार का नियमन करने तथा इनके दुरूपयोग पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान किया गया है।
- कुल 154 देशों ने इस संधि प्रस्ताव के समर्थन में अपना मत व्यक्त किया जबकि ईरान, सीरिया तथा उत्तर कोरिया ने इसके विरोध में वोट डाले तथा 23 देश मतदान के दौरान अनुपस्थित रहे।
- विश्व के शीर्ष हथियार निर्यातक देश अमेरिका ने इस संधि के पक्ष में अपना वोट दिया जबकि चीन एवं रूस जैसे प्रमुख अस्त्र उत्पादक देशों ने मतदान में भाग नहीं लिया।
- भारत ने यह कहते हुए इसके मतदान में हिस्सा नहीं लिया कि यह संधि उसकी अपेक्षाओं पर खरी नहीं उतरती तथा साथ ही यह परंपरागत हथियारों के अवैध व्यापार एवं इनके दुरुपयोग पर पूर्णतः प्रतिबंध लगाने में भी असमर्थ प्रतीत होती है।
- इस संधि के लागू होने के लिए इस पर हस्ताक्षर करने वाले विश्व के 50 देशों द्वारा इसका अनुसमर्थन आवश्यक है।
- इस संधि के तहत् सदस्य देशों पर प्रतिबंध होगा कि वह ऐसे देशों को हथियार न दें जो नरसंहार, मानवता के प्रति अपराध या आतंकवाद में शामिल होते हैं।
- इसके अलावा इस संधि का यह भी मकसद है कि हथियारों की काला बाजारी पर रोक लगाई जाए। इस संधि के तहत् देशों को सुनिश्चित करना होगा कि उनके द्वारा भेजे गए हथियार काला बाजार में तो नहीं पहुंच रहे।
- इस संधि में शामिल होने वाले देशों की हर वर्ष हथियारों की बिक्री का लेखा-जोखा भी सार्वजनिक करना होगा।
- वैसे तो इस संधि में इसे लागू करवाने के लिए कोई कानूनी तरीके नहीं शामिल किए गए खरीद-फरोख्त की प्रक्रिया को काफी हद तक पारदर्शी बनाने में मदद मिलेगी।