सरसों
खाद्य-तेलों के उत्पादन में इन तिलहन फसलों की मुख्य भागीदारी है। भारत में इनका चार भागों में विभाजन किया जाता है- भूरा सरसों, जो सामान्यतः राई कहलाता है, पीला सरसों, जिसे सरसों ही कहा जाता है, तोरिया और तरामिरा या तरा। व्यापार के क्षेत्र में सरसों, तोरिया और तारामिरा को तोरी (रेप्सिड) तथा राई को मस्टर्ड कहा जाता है।
टोरी और सरसों की फसलों का उत्पादन उशन कटिबन्धीय तथा शीतोष्णकटिबंधीय क्षेत्र में शीतित तापमान में अच्छा होता है। जिन क्षेत्रों में 25 सेंटीमीटर से 40 सेंटीमीटर तक वर्षा होती है, वहां इनकी खेती की जा सकती है। सरसों और तरामीरा को निम्न वर्ष वाले क्षेत्रों में प्रमुखता प्रदान की जाती है। राई और तोरी का उत्पादन मध्य एवं उच्च वर्षा वाले क्षेत्रों में होता है।
उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब, मध्य प्रदेश और हरियाणा कुल सरसों और तोरी का 90 प्रतिशत क्षेत्र घेरते हैं और उत्पादन में भी इतनी की ही इनकी भागीदारी है। असोम, बिहार, पश्चिम बंगाल, ओडीशा, गुजरात और जम्मू एवं कश्मीर अन्य उत्पादक राज्य हैं।
तिल
तिल के बीज से 46 से 52 प्रतिशत तक तेल निकाला जाता है। दक्षिण भारत में इसके तेल का उपयोग खाद्य तेल के रूप में किया जाता है। इस तेल का उपयोग इत्र, औषधि एवं अन्य रसायनों के साथ-साथ दीया आदि के ईधन और मालिश में भी होता है।
तिल की फसल के लिए 21° सेंटीग्रेड तापमान तथा सामान्य वर्षा उपयुक्त है। तिल के उत्पादन के लिए हल्की दोमट मिट्टी सर्वाधिक उपयुक्त है। उत्तरी भारत के राज्यों में इस फसल का उत्पादन खरीफ के मौसम में होता है, जबकि दक्षिण भारत के राज्यों में रबी के मौसम में। खरीफ मौसम में जहां सिंचाई आधारित खेती की जाती है, वहां उपज कम प्राप्त होती है, जबकि रबी की फसलों से अधिक उपज प्राप्त होती है।
तिल का अधिकाधिक उत्पादन सतलज और गंगा के मैदान तथा दक्कन के पठारी क्षेत्रों में होता है।