बहुउद्देशीय योजनाएं एक प्रकार की नदी घाटी योजनाएं हैं, जिसका प्रमुख उद्देश्य जल संसाधनों का बहुविध उचित उपयोग करना है। इन परियोजनाओं के अंतर्गत एक साथ जिन लक्ष्यों को निर्धारित किया गया है वे हैं-
- भविष्य में उपयोग के लिए जल-भंडारण करना
- सिंचाई के लिए जल आपूर्ति करना
- जल-विद्युत का उत्पादन करना
- बाढ़ पर नियंत्रण
- मृदा-अपरदन पर नियंत्रण
- आंतरिक जल-परिवहन का विकास
- जल-जमाव वाली भूमि को कृषि योग्य बनाना और मलेरिया पर नियंत्रण करना
- मछली पालन तथा मत्स्य उद्योगों को प्रोत्साहन देना
- नदी तट का मनोरंजक स्थलों एवं स्वास्थ्यवर्द्धक क्षेत्रों के रूप में विकास
कुछ सिंचाई एवं बहुउद्देशीय योजनाएं स्वतंत्र भारत में आरंभ की गई है।
नागार्जुन सागर परियोजनाः आंध्रप्रदेश में कृष्णा नदी पर निर्मित है। यह सिंचाई हेतु सभी सुविधाएं विकसित करती है और साथ ही बाढ़ नियंत्रण और जल विद्युत का उत्पादन भी करती है।
तुंग भद्रा परियोजना: तुंगभद्रा नदी पर अवस्थित है, जो कृष्णा की सहायक नदी है। यह योजना आंध्र प्रदेश और कर्नाटक की संयुक्त परियोजना है, जो सिंचाई और विद्युत के लिए अत्यंत उपयोगी है।
पोचम्पाद परियोजना: गोदावरी नदी के जल के समुचित उपयोग के लिए आंध्र प्रदेश सरकार द्वारा निर्मित एक विस्तृत परियोजना है। इस योजना के तहत सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी जाती है।
गंडक परियोजना: बिहार और उत्तर प्रदेश की संयुक्त परियोजना है, जो बिहार की गंडक नदी पर स्थित है। इस परियोजना द्वारा नेपाल वर्ष 1959 से ही बिजली और सिंचाई की सुविधा प्राप्त कर रहा है।
कोसी परियोजना: बिहार में कोसी नदी पर निर्मित है। इस परियोजना की शुरुआत नेपाल सरकार और बिहार सरकार की संयुक्त परियोजना के रूप में 1954 ई. में हुई। कोसी नदी के जल को नियंत्रित करना- सिंचाई एवं शक्ति की प्राप्ति, बाढ़ पर नियंत्रण स्थापित करना, भूमि-अपरदन को रोकना, मत्स्य पालन को विकसित करना और नहरों के माध्यम से परिवहन की सुविधा उपलब्ध कराना कोसी नदी परियोजना का मुख्य उद्देश्य है। इस परियोजना के अंतर्गत नेपाल में हनुमान नगर बैराज का निर्माण 1965 ई. में ही संपन्न हो चुका है।
काकरापार परियोजना: ताप्ती नदी के जल के समुचित उपयोग के लिए गुजरात सरकार ने बनायी है। ताप्ती नदी पर निर्मित इस परियोजना द्वारा सिंचाई और विद्युत की आवश्यकता को पूरा किया गया है।
उकाई परियोजना: गुजरात सरकार द्वारा ताप्ती नदी पर निर्मित की गयी है। जल के उचित प्रबंधन के लिए इस परियोजना की आवश्यकता महसूस की गई।
माही परियोजना: गुजरात में माही नदी पर निर्मित है। इस परियोजना के दो चरण हैं- पहले चरण में बनकबोरी गांव के निकट 796 मीटर लम्बा तथा 21 मीटर ऊंचा बांध बनाया जा रहा है। दूसरे चरण में कदाना के निकट 1,430 मीटर लम्बा तथा 58 मीटर ऊंचा बांध बनाया जाएगा। इस परियोजना से सिंचाई की उच्च क्षमता प्राप्त की जा सकती है।
घाटप्रभा परियोजना: घाटप्रभा नदी के जल के समुचित उपयोग के लिए कर्नाटक सरकार जिले में घाट प्रभा नदी पर बांध का निर्माण कर बहुत बड़े क्षेत्र को सिंचित करने की योजना है। इस परयोजना के अंतर्गत कर्नाटक के बेलग्राम और बीजापुर जिले में घटप्रभा नदी पर बांध का निर्माण कर बहुत बड़े क्षेत्र को सिंचित करने की योजना है।
मालप्रभा परियोजना: कर्नाटक के बेलगांव जिले में मालप्रभा नदी पर निर्मित है। इस परियोजना के तहत भी बहुत बड़े भू-भाग को सिंचित करने की योजना है।
कृष्णा परियोजना: कृष्णा परियोजना का निर्माण कर्नाटक के पार कृष्णा नदी पर हुआ है। अलमट्टी में बांध का निर्माण कार्य अभी चल रहा है।
तवा परियोजना: तवा नदी के जल के समुचित उपयोग के लिए मध्यप्रदेश सरकार द्वारा चलायी जा रही एक परियोजना है। तवा नदी नर्मदा की सहायक नदी है, जो मध्यप्रदेश के होशंगाबाद जिले में बहती है। परियोजना के अंतर्गत तवा नदी पर इटारसी के रानीपुर गांव के समीप एक बांध का निर्माण किया जा रहा है।
चम्बल परियोजना: चम्बल परियोजना का निर्माण चम्बल नदी पर किया गया है। चम्बल नदी यमुना की एक सहायक नदी है और इस नदी से संबंधित परियोजना मध्यप्रदेश और राजस्थान की सरकार द्वारा संयुक्त रूप से चलायी जा रही है। चम्बल परियोजना के कार्यक्रम को तीन चरणों में विभक्त किया गया है- प्रथम चरण में गांधी सागर बांध तथा कोटा बैराज, द्वितीय चरण में राणाप्रताप सागर बांध (112 मेगावाट क्षमता) तथा तृतीय चरण में जवाहर सागर बांध (99 मेगावाट विद्युत गृह) तथा अन्य विद्युत गृह निर्माण की योजना है।
राजघाट बांध परियोजना: बेतवा नदी पर निर्मित परियोजना है। यह परियोजना मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश की संयुक्त परियोजना है।
भीमा परियोजना: महाराष्ट्र के भीमा नदी पर निर्मित है। इस परियोजना के अंतर्गत दो बांधों का निर्माण किया जाएगा- पहला पुणे जिले में पवना नदी पर तथा दूसरा शोलापुर जिले में कृष्णा नदी पर। भीमा परियोजना का कार्य अब पूरा हो गया है।
जायकवाड़ी परियोजना: गोदावरी नदी के जल के समुचित उपयोग के लिए महाराष्ट्र सरकार द्वारा चलाई गई एक परियोजना है। इस परियोजना के प्रथम चरण में एक मिट्टी के बांध का निर्माण किया जाएगा और द्वितीय चरण में मजाल गांव में एक बांध का निर्माण किया जाएगा।
नर्मदा परियोजना: नर्मदा परियोजना (इंदिरा सागर बांध) का निर्माण नर्मदा नदी पर किया गया। हालांकि यह परियोजना विवादस्पद हो जाने के कारण पूर्णतः क्रियान्वित नहीं हो सकी है, परंतु इसका निर्माण हो जाने के बाद यह विश्व की सबसे बड़ी नदी घाटी परियोजना साबित होगी। यह मध्यप्रदेश और गुजरात की संयुक्त परियोजना है।
सरदार सरोवर परियोजना: नर्मदा नदी के जल के समुचित उपयोग के लिए गुजरात, मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान की राज्य की सरकारों द्वारा एक संयुक्त परियोजना चलायी जा रही है। हालांकि यह परियोजना भी विवादास्पद बनी हुई है।
हीराकुंड परियोजना: ओडीशा में महानदी के बाढ़ के प्रकोप से बचने के लिए निर्मित परियोजना है। इस परियोजना के तहत महानदी नदी पर सम्बलपुर के निकट हीराकुंड नामक स्थान पर एक विस्तृत बांध का निर्माण किया गया है। यह बहुउद्देश्यीय परियोजना है। विश्व का सबसे लंबा बांध इस परियोजना के तहत बनाया गया है। परियोजना के प्रथम चरण में तीन नहरों का निर्माण किया जा चुका है- बोरगढ़ नहर, सेसन नहर तथा सम्बलपुर नहर। परियोजना के द्वितीय चरण में चिपलिया में 24,000 किलोवाट क्षमता वाले तीन विद्युत गृहों का निर्माण किया गया है।
भाखड़ा नांगल परियोजना: भारत की सबसे बड़ी बहुउद्देश्यीय परियोजना है। सतलज पंजाब में प्रवाहित होने वाली पांच प्रमुख नदियों में से एक तथा सिंधु की सहायक नदी है। इस नदी के जल के समुचित प्रबंधन के लिए 1963 ई. में भाखड़ा बांध का निर्माण किया गया। भाखड़ा नंगा;ल परियोजना पंजाब, हरियाणा और राजस्थान का संयुक्त प्रयास है। इस परियोजना के अंतर्गत नांगल के समीप गंगुवाल और कोटला नाम से दो विद्युत गृहों का भी निर्माण किया गया है।
व्यास परियोजना: पंजाब, हरियाणा और राजस्थान की सरकारों द्वारा की गयी एक संयुक्त परियोजना है। इस परियोजना का निर्माण व्यास नदी पर किया गया है। ध्यातव्य है कि व्यास नदी सिंधु की एक सहायक नदी है। इस परियोजना के दो चरण हैं। प्रथम चरण में व्यास नदी के जल को सतलज से जोड़ने के लिए पंडोह के पास एक 20 किलोमीटर लंबा तथा 61 मीटर ऊंचा बांध बनाया जाएगा और एक विद्युत गृह हेडर के पास बनाया जाएगा, जिसकी क्षमता 660 मेगावाट होगी। परियोजना के दूसरे चरण में पोंग के निकट एक 116 मीटर ऊंचा बांध बनाया जाएगा।
थीन बांध परियोजना: रावी नदी के जल के समुचित उपयोग के लिए हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा बनाई गई एक परियोजना है। इस परियोजना के अंतर्गत रावी नदी पर तलवारा के निकट एक बांध का निर्माण किया गया है। थीन बांध को पोंग बांध की संज्ञा से भी अभिहित किया जाता है। इस परियोजना से हिमाचल प्रदेश के अतिरिक्त पंजाब, हरियाणा और राजस्थान भी लाभान्वित हो सकेंगे।
राजस्थान नहर परियोजना: राजस्थान नहर परियोजना (इंदिरा गांधी नहर) राजस्थान के उत्तर पूर्वी क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा उपलब्ध कराती है।
पराम्बिकुलम-अलियार परियोजना: केरल और तमिलनाडु राज्यों के संयुक्त प्रयास से चलाई जाने वाली एक परियोजना है। इस परियोजना के अंतर्गत आठ छोटी नदियों (इनमें से छह अन्नामलाई पहाड़ पर और दो मैदान में स्थित हैं) के जल को एक विशाल जलाशय बनाया जाएगा, जिससे बहुत बड़े भू-भाग को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध करायी जा सके तथा विद्युत उत्पादन भी किया जा सके।
शारदा सहायक परियोजना: शारदा-गोमती और सई नदी के जल के समुचित उपयोग के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जाने वाली एक बहुउद्देश्यीय परियोजना है। इस परियोजना के कार्य पांच चरणों में संपन्न होंगे।
रामगंगा परियोजना: उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा चलाई जाने वाली एक परियोजना है। रामगंगा गंगा की एक सहायक एके सहायक नदी है। इस परियोजना के अंतर्गत सिंचाई और विद्युत् की सुविधा उपलब्ध करायी जाएगी। इस परियोजना के तहत राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली को 200 क्यूसेक जल उपलब्ध कराया जाएगा।
बाणसागर परियोजना: बाणसागर परियोजना का निर्माण सोन नदी पर हुआ है। चूंकि सोन नदी का जल मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार तीनों राज्यों में प्रवाहित होता है, इसलिए इन राज्यों के संयुक्त प्रयास से यह परियोजना क्रियान्वित की जा रही है। इस परियोजना के लिए तीनों राज्यों का आर्थिक योगदान क्रमशः 2 : 1 : 15 के अनुपात में निर्धारित है। इस परियोजना के अंतर्गत बांध का निर्माण का कार्य और तिन विद्युत् हृहों की स्थापना का कार्य चल रहा है।
फरक्का परियोजना: फरक्का परियोजना गंगा नदी और भागीरथी में आने वाली बाढ़ के प्रकोप से कलकत्ता के बंदरगाह की सुरक्षा प्रदान करने तथा हुगली नदी में जल-परिवहन की व्यवस्था को सुधारने के उद्देश्य से 1963-64 में आरंभ की गई थी। इस परियोजना के तहत गंगानदी पर फरक्का में तथा भागीरथी नदी पर जंगीपुर में बांध का निर्माण किया गया। फरक्का और जंगीपुर के बीच 39 कि.मी. एक लम्बी नहर का भी निर्माण किया गया है। इस परियोजना के अंतर्गत रेल-पुल एवं सड़क-पुल का निर्माण किया गया है और जल-मार्ग का निर्माण किया गया है और जल-मार्ग का निर्माण चल रहा है। रेल-सड़क पुल के निर्माण के बाद फरक्का का संपर्क असम, बंगाल और भारत के शेष राज्यों से स्थापित हो सका है।
कंगसावती परियोजना:कंगसावती परियोजना पश्चिमबंगाल के कंगसावती एवं कुमारी नदी के ऊपर निर्मित है। इस परियोजना के अंतर्गत कगसावती और कुमारी नदियों पर मिट्टी के बांध बनाए जाएंगे।
मयूराक्षी परियोजना: मयूराक्षी परियोजना पश्चिम बंगाल की एक बहुउद्देश्यीय परियोजना है, जिसका निर्माण मयूराक्षी नदी पर हुआ है। मयूराक्षी नदी छोटानागपुर पठार के उत्तर-पूर्वी भाग से निकल कर बिहार में प्रवाहित होती हुई पश्चिम बंगाल में प्रविष्ट होती है। इस परियोजना के अंतर्गत 1955 ई. में सजोर नामक स्थान पर एक बांध का निर्माण किया गया, जिसे कनाडा बांध भी कहते हैं। इसके अलावा मयूराक्षी परियोजना का उद्देश्य सिंचाई सुविधा उपलब्ध कराना तथा विद्युत उत्पादन करना भी है।
दामोदर नदी घाटी परियोजना: दामोदर नदी पर निर्मित झारखण्ड और पश्चिम बंगाल की संयुक्त परियोजना है। यह परियोजना अमेरिका की टेनेसी घाटी परियोजना को आधार बनाकर आरंभ की गई। इस परियोजना के क्रियान्वयन के लिए 1948 ई. में दामोदर घाटी निगम की स्थापना की गई। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य दामोदर नदी में आने वाली बाढ़ और उसके द्वारा होने वाला भूमि-अपरदन की समस्या पर नियंत्रण स्थापित करना तथा सिंचाई सुविधा और विद्युत् उत्पादन बढ़ाना है। परियोजना के अंतर्गत चार पगादितों- तिलैया, कोनार, मैथन और पंचेट पर बांध निर्मित किए गए हैं। और साथ ही बोकारो (I और II यूनिट भी कार्यरत), चंद्रपुर और दुर्गापुर में तीन विद्युत-निर्माण गृहों की स्थापना की गई। ये मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल को विद्युत आपूर्ति करते हैं।
दुलहस्ती परियोजना: जम्मू-कश्मीर के चेनाब नदी पर निर्मित है। इस परियोजना के अंतर्गत 6,000 मेगावाट जल विद्युत उत्पादन के लिए जलप्रपात के विकास पर ध्यान दिया जाएगा।
चुक्का परियोजना: भारत और भूटान द्वारा संयुक्त रूप से चलाई जाने वाली एक परियोजना है। इस परियोजना की शुरुआत भारत सरकार द्वारा की गयी थी।
सलाल परियोजना: चेनाब नदी के जल के समुचित उपयोग के लिए जम्मू और कश्मीर राज्य द्वारा तैयार की गई एक विस्तृत परियोजना है। इस परियोजना पर कार्यारम्भ 1970 ई. में हुआ। यह मुख्य रूप से जल विद्युत परियोजना है। इस परियोजना का मुख्य उद्देश्य सिंचाई और विद्युत शक्ति उपलब्ध कराना है।
बड़ी सिंचाई परियोजनाओं के क्रियान्वयन में आने वाली कठिनाइयां
बड़ी सिंचाई परियोजना में कुछ कठिनाइयां हैं। ये इस प्रकार हैं:
- बड़ी सिंचाई परियोजनाओं की पूंजी लागत ऊंची होती है, जो उनकी प्रगति को संसाधनों की उपलब्धता के अधीन कर देती है।
- इसमें निवेश भारी मात्रा में होता है जिससे भारी वित्तीय दायित्व उत्पन्न होता है। इसके कारण छिद्रान्वेषण को कम किया जा सकता है।
- बड़ी सिंचाई परियोजनाओं का निर्माणकाल काफी लंबा होता है। कभी-कभी परियोजना के पूरा हो जाने के बाद भी, जल आपूर्ति के अपेक्षित कार्य तंत्र के अभाव में लक्षित लाभार्थियों के पास जल नहीं पहुंच पाता।
- जटिल अभियांत्रिकी कार्यों की जरूरत के कारण बड़ी सिंचाई परियोजनाओं द्वारा इस्पात एवं सीमेंट की उपलब्ध आपूर्ति पर भारी मांगों का भार डाल दिया जाता है।
- बड़ी सिंचाई परियोजनाओं के फलस्वरूप एक विशाल भूभाग जलमग्न हो जाता है, जिसके कारण एक बड़े स्तर पर जनसंख्या का विस्थापन होता है। इस प्रकार इन परियोजनाओं में पुनर्वास तथा क्षतिपूर्ति से जुड़ी समस्याएं निहित होती हैं।
- बड़ी सिंचाई परियोजनाओं या बड़े बांधों को पर्यावरण तथा पारिस्थितिक संतुलन के लिए भी हानिकारक माना जाता है। बड़े बांधों के कारण व्यापक वन भूमि और कभी-कभी उपजाऊ कृषि योग्य भूमि को जलमग्न कर देते हैं। क्षतिपूर्ति कारक वानिकी के अभाव में वृक्षों का घटते जाना एक क्षेत्र के पारिस्थितिक संतुलन हेतु घातक सिद्ध होता है। साथ ही, जलग्रहण क्षेत्र में पर्याप्त मृदा संरक्षण उपायों की अनुपस्थिति से जलाशयों में गाद जमा हो जाती है, जिसके कारण इन जलाशयों की क्षमता एवं जीवनकाल में कटौती होती जाती है और संपूर्ण परियोजना की प्रभावशीलता घट जाती है।
राजनीतिक बाध्यताओं के कारण अनेक परियोजनाओं के लिए संकुचित संसाधनों का वितरण किया जाता है, जिससे समय एवं लागत की दृष्टि से गैर-प्रभावी परिणाम सामने आते हैं।
सिंचाई क्षमता का एक मजबूत भाग हिमालय क्षेत्र में संकेन्द्रित हैं, जो भूकंपीय घटनाओं की दृष्टि से संवेदनशील माना जाता है, अतः इस क्षेत्र में बड़ी सिंचाई परियोजनाओं की सुरक्षा के प्रति उत्पन्न चिंताओं पर विचार करना जरूरी हो जाता है।
किसानों द्वारा सिंचाई-आधारित कृषि पद्धतियों को अपनाने में अधिक समय लिये जाने के कारण भी परियोजना विलंब की समस्या उत्पन्न होती है।